Category: POETRY


एक सीने में दो दिल धडकते

मैंने देखा है,

एक को रोते

एक को औरों को हँसाते

मैंने देखा है,

खुद को अंजानों की भीड में

और भीड जैसा माहौल

खुद में उमडते

मैंने देखा है..॥

 

दूसरों की पादुकाओं में

ठंडी रातों में

अपने मन को

कुलमुलाते मैंने देखा है,

दीवार जैसे रिश्तों को

समय की आँधी में

फिसलती रेत होते

मैंने देखा है…॥

 

happy hand

happy me 🙂

 

देखो ना इतने ध्यान से तुम,

नज़रें जो मिली तो रो पडोगे,

सौ दर्द, हज़ार आँसू, अनगिनत लफ़्ज़ दबे हैं यहाँ,

दिल के टुकडे ’गर’ गिनने निकलोगे

तो खुद बिखर पडोगे,

शब्दों में बयां ना हो जो,

उस दास्तां का सारांश है ये,

जहाँ लोग ज़मानों की तरह

बदल गये,

और बदले ज़मानों का

हिसाब नहीं जहाँ,

हर टूटी मुस्कुराहट में

छिपी खुशी है जहाँ,

और उन्हीं लोगों, ज़मानों और मुस्कुराहटों मे

बर्फ़ से ठंडे रिश्तों को

खून मे बदलते

मैंने देखा है…

मैंने देखा है…॥॥

parted

parted

everyone writes on how a guy feels after two people get parted.

here I try to depict… how a girl really feels…

जाने अन्जाने शायद कुछ

कह ना पायी थी,

तुम भी तो

ना थे समझे,

और हर अनकहा शब्द

दर्द बन कर रह गया है

.

सिरहन सी दौड जाती है

जब पास से निकल जाते हो,
क्या कठोर ही थे

या मैं ना जानी थी,

और हर छिपाया आँसू

वहीं जम कर रह गया है

.

ना चाह कर भी सोचने

पर मज़बूर हुई थी,

कि हम साथ थे जब

तो क्या पैदा इक दूरी हुई थी,

और हम जहाँ हैं आज क्या

उसी का नतीजा हो कर रह गया है

.

दिन से सप्ताह

सप्ताह पक्ष हुए, और

पक्ष महीने हुए हैं

हमें नज़रें मिलाये,

बस दूर से ही

सुनती हूँ तुम्हें,

और यादों के काँच का हर टुकडा

खुद को सताने का ज़रिया हो गया है

.

मैं तुम्हारी तरह

अपनी मर्ज़ी से नहीं चलती,

हज़ारों तरह की उम्मीदों का

नन्हा सा बांध हूँ,

किस किस को थाम के चलूँ

इसी कश्मकश में,

सब कुछ पीछे

छूटता जाता है,

रिश्ते नहीं संभाल पा रही हूँ

बस भाग ही रही हूँ,

तुम्हारा साथ ना दे पायी

इस का दुख ना करना,

मेरा गुस्सा भी

तुम पर नहीं खुद पर है,

कि शायद मैं ही हार गयी तुम्हें

इस जीवन की भाग दौड में

….

.

तुम खुश हो या नहीं

पता नहीं,

पर मैं यहाँ अभी भी

वहीं खडी हूँ,

जहाँ कभी नहीं

जाना चाहती थी,

मैं चुप सी ही ठीक हूँ

शायद हाँ, तुम्हारे कोप के इंतज़ार में,

और ये बेकार सा जीवन ही

मेरे जीने की वज़ह सा हो गया है….

कुछ आज़ाद ख्य़ालों में
बंदिशें ढूँढता है कोई,
अपने ’पारणों’ में
खुद को ढूँढता है कोई,
सब में जाना हुआ
बेनाम है कोई…
गुमनाम है कोई ॥

किसी के लिये राम
तो किसी के लिये
विराम है कोई,
प्रतिदिन अपना ढूँढ्ता
पूर्णविराम है कोई,
बेजुबान चित्रों से मापता
नये आयाम है कोई…
गुमनाम है कोई ॥

एक हँसते हुए चाँद
को जन्म देती
शाम है कोई,
हर रात ठहाकों में
आँसूओं को करता
नीलाम है कोई,
छोटी-छोटी खुशियों का
इक नायाब सा
गुलाम है कोई…
क्या सच में गुमनाम है ’ये’ कोई…???

तुम्हारी मुस्कुराहटों के,
तुम्हारी प्यारी बातों के,
उन साथ बिताये पलों के
रूप में मिली सौगातों के
बदले में,
काश तुम्हें कुछ दे पाता,
काश, एक कविता लिख पाता…।

यूँ तो जो महसूस किया
उसे कोरे कागज़ पर उकेरना
बहती नदी को मुठ्ठी में
बन्द करने जैसा होगा,
काश उन भावनाओं के नीर
का रंग तुम्हें दिखला पाता,
काश, एक कविता लिख पाता…।
कोई ना समझ पाया था
ना कभी समझेगा,
कैसे और क्या हैं हम
इक-दूजे के लिये,
काश उस अनकही अनजानी
समझ को कोई संज्ञा दे पाता,
काश, एक कविता लिख पाता…।
अरे पगली,
कोई कवि थोडे ही हूँ,
कि तुझ पर अनगिनत
काव्य न्यौछावर कर दूंगा,
पर तेरी हर मुस्कुराहट
तो मेरे लिये ’तुकान्त’ है,
काश उन पलों, रंगों, संज्ञाओं पर
मैं भी एक ’मधुशाला’ लिख पाता…
काश, एक कविता लिख पाता…।

बीते पलों में खोया जा रहा हूँ,
सूखे आँसूओं में डूबा जा रहा हूँ,
दिल ही दिल कोसता हूँ किसी को
धुंधली रातों में सोया जा रहा हूँ।
ना ना… डरो मत…
किसी देवदास से नहीं मिले तुम,
हैँ और भी लोग दुखी यहाँ
मैं तो बस एक छोटी सी
चुभन से उठे दर्दों के
एकाकीकृत बीज को
अपने से दूर कहीं
बोया जा रहा हूँ।

ठीक वैसी ही रात है,
वैसा ही अंधियारा…
फ़र्क सिर्फ़ इतना कि
इस बार सुबह का इन्त्ज़ार है
और आँखों मे उन्हीं
टूटे दर्पण के टुकडों की चमक,
शायद एक उम्मीद है
कि नयी सुबह का पंछी
एक नया पैगाम लायेगा।

फिर से…
चुप हूँ, खामोश हूँ, बेज़ुबान हूँ
पर मेरा विश्वास
मेरे ही अविश्वास से
जीत गया है,
और अपनी नियति को
ठुकराते ठुकराते जाने…
कितना अरसा बीत गया है… ॥