छोटी छोटी खुशियों समान बूंदों को
खुद में समेट कर,
सूखी मुरझाई धरती के
सुखे कंठ को देखकर,
ठिठुरती, रंभाती, हुंकारती
हवा को साथ लेकर,
मैं चला, मैं चला
उन झनझनाती बारिशों की बारात लेकर॥
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कहीं कोप ने मेरे
सब कुछ बहा दिया,
तो कभी लाड मेरा देखकर
तुमने दुआ में हाथ उठा लिया,
हज़ारों नफ़रतों के बाग में
किसी एक मुसकुराहट का गुलाब लेकर
मैं चला, मैं चला
पास आये हर पिपासु की प्यास लेकर॥
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अरे!! एक अदना सा
बादल ही तो था,
अपने आँसूओं से
सब को हँसाता गया,
अपने हर साथी को तूफानी
हवाओं में खोते देखा
फिर भी हर बार, हर समय
बढता गया, मुसकुराता गया,
इस प्रपंच के अगणित रिश्तों मे उलझा
किसी को दुलारता, तो किसी को दुत्कारता गया,
थक हार कर जब पँहुचा मरु
तो आँसू भी ना थे मेरे पास,
और तुमने आसानी से कह डाला
कि कहीं का न छोडा हमने…
बारिश ना देता, परंतु उस धूप से
हमेशा करता रक्षा तुम्हारी,
पर सब्र ना आया तुम्हें
और हर बार की तुम्हारे कोप मे
लो फिर से वाष्प हो गया मैं…
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पर मरा नहीं हूँ मैं
फिर से आऊँगा,
तुम तो मेरे आँसूओं के भी लायक नहीं
औरों को अनगिनत खुशियों से नहलाऊँगा,
तुम्हारी ऊष्मा से बिखरे
मेरे मन को साथ लेकर,
मैं चला, मैं चला
किसी नई दुनिया में खुशियों की सौगात लेकर…॥॥
bhot acchi lagi…lyk it……shabbas!!!
dhanyawad